भारत के पांच अनजाने रोचक तथ्य जिनके राज आज तक नही खुले

रोचक तथ्य 

रोचक तथ्य भारत को ऋषि मुनियों के अवतारों की भूमि कहा जाता है। इसके साथ ही देश मैं कई सारी रहस्यमई जगह है। जिसके राज से आज तक पर्दा नहीं उठ पाया है, आज हम आपको ऐसी कुछ रहस्यमई जगह के बारे में बताएंगे, जो दुनिया के लोगों को अपने रहस्यों से चकित करती है।

वृंदावन का मंदिर 

उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित वृंदावन धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल है। वृंदावन भगवान श्री कृष्ण की लीला से जुड़ा हुआ है। वृंदावन में एक ऐसा मंदिर है, जो अपने आप ही खुलता है और बंद भी होता है। इसी मंदिर को रंगमहल के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि, निधिवन परिसर में स्थित रंग महल में भगवान श्रीकृष्ण रात्रि में शयन करते हैं। मंदिर में हर रोज प्रसाद के तौर पर मक्खन, मिश्री रखी जाती है। इसके अलावा भगवान कृष्ण के सोने के लिए पलंग भी रखी जाती है। सुबह जब मंदिर खोला जाता है, तो लगता है कि, इस बिस्तर पर कोई सोया था और प्रसाद भी ग्रहण किया है। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि अंधेरा होते ही इस मंदिर के दरवाजे अपने आप ही बंद हो जाते हैं।

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अलेया भूत लाइट 

पश्चिम बंगाल का दलदली इलाका भी रहस्य को अपने आप में समेटे हुए हैं। कहा जाता है कि, यहां पर कई बार रहस्यमय रौशनी देखने को मिलती है। स्थानीय लोगों के द्वारा बताया जाता है कि, यह रोशनी मछुआरों की आत्माएं हैं। जिन्होंने मछली पकड़ते वक़्त किसी वजह से अपनी जान गवा दी थी और यह भी कहा जाता है कि, जो मछुआरा इस रोशनी को देखता है या तो, वह रास्ता भटक जाता है। या उसकी जल्द ही मौत हो जाती है। दलदली क्षेत्र से कई बार मछुआरों के शव बरामद किए गए हैं। लेकिन स्थानीय प्रशासन यह नहीं मानता है कि, ऐसा भूतों की वजह से हुआ है। वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि, दलदली क्षेत्रों में अक्सर मीथेन गैस बनती है। उसी के कारण किसी तत्व के संपर्क में आने से रोशनी पैदा होती है।

अलेया भूत लाइट.

जतिंगा गाँव 

असम के दिमा हासो जिले के पहाड़ी में स्थित जतिंगा घाटी पक्षियों का सुसाइड पॉइंट के तौर पर मशहूर है। जतिंगा गांव में मानसून बीत जाने के बाद एक ऐसा स्थल बनता है कि, यहां की स्थिति धुंध पड़ने के सामान हो जाती है। और इसी समय गांव में एक अजीब घटना होती है। यहां के स्थानीय और प्रवासी पक्षियों में एक अजीब व्यवहार और परिवर्तन देखने को मिलता है। हर साल सितंबर महीने में यह स्थल पक्षियों की आत्महत्या के कारण सुर्खियों में आ जाता है। इस जगह पर ना केवल स्थानीय पक्षी बल्कि प्रवासी पक्षी भी पहुंचकर सुसाइड कर लेते हैं। इस वजह से जतिंगा गांव काफी रहस्यमई माना जाता है।

इंसानो में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति आम है। लेकिन पक्षियों के मामले में यह बात एकदम अलग हो जाती है। इस गांव में पक्षी तेजी से उड़ते हुए किसी इमारत या पेड़ से टकरा जाते हैं। जिससे उनकी मौत हो जाती है। ऐसा इक्का-दुक्का नहीं, बल्कि हजारों पक्षियों के साथ होता है। सबसे अजीब बात यह है कि, यह पक्षी शाम 7:00 से रात 10:00 बजे के बीच ऐसा करते हैं। जबकि आम मौसम में पक्षियों की प्रवृत्ति दिन में ही बाहर निकलने की होती है और रात में वह घोसले में लौट जाते हैं। यह आज भी एक रहस्य है।

लटकते खंभे का रहस्य 

आंध्र प्रदेश का वीरभद्र मंदिर विजयनगर साम्राज्य के वास्तु शिल्प शैली का एक शानदार नमूना है, और इसमें स्थित विशाल नंदी मूर्ति, फ्रेस्को पेंटिंग और नकाशी जैसे आकर्षक फीचर्स के अलावा इसके लटकते खंभे भी जिज्ञासा उत्पन्न करते हैं। कुल मिलाकर इस मंदिर में 70 खंभे है। हालांकि दूसरों के विपरीत उनमें से एक भी जमीन से संपर्क में नहीं आता है। ऐसा माना जाता है कि, खंभे के आशीर्वाद के लिए नीचे कुछ स्लाइड करके भी आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।

कहा जाता है कि वर्ष 1902 में उस ब्रिटिश इंजीनियर ने मंदिर के रहस्य को सुलझाने की तमाम कोशिशें कीं। इमारत का आधार किस खंभे पर है ये जांचने के लिए उस इंजीनियर ने हवा में झूलते खंभे पर हथौड़े से भी वार किए। उससे तकरीबन 25 फीट दूर स्थित खंभों पर दरारें आ गईं। इससे यह पता चला की मंदिर का सारा वजन इसी झूलते हुए खंभे पर है। इसके बाद वह इंजीनियर भी मंदिर के झूलते हुए खंभे की थ्योरी के सामने हार मानकर वापस चला गया।

रूपकुंड झील 

भारत में ऐसी कई झील है, जो रहस्यमई है। वही हिमालय की रूपकुंड झील की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। साल 1942 मैं यहां पर ब्रिटिश के फॉरेस्ट गार्ड को सैकड़ों नर कंकाल मिले थे। आज भी झील में मानव के कंकाल और हड्डियां पड़ी हुई है। यह झील समुद्र तल से करीब 5,029 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह झील हिमालय की चोटियों के बीच स्थित है। जिसे त्रिशूल जैसा दिखने की वजह से त्रिशूल का नाम दिया गया है। उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में स्थित त्रिशूल का भारत की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों में समावेश होता है। रूपकुंड झील को कंकालों की झील भी कहा जाता है। इस रहस्य को जानने के लिए मानव विज्ञानी और विज्ञानिक अध्ययन में लगे हुए हैं।

रूपकुंड झील 

इतने सारे कंकालों और हड्डियों को देख ऐसा आभास होता था कि, शायद पहले यहां पर जरूर कुछ न कुछ बहुत बुरा हुआ था। शुरुआत में इसे देख कई लोगों ने यह कयास लगाया कि हो न हो यह सभी नर कंकाल जापानी सैनिकों के होंगे, जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत में ब्रिटेन पर आक्रमण करने के लिए हिमालय के रास्ते घुसते वक्त मर गए होंगे।

उस वक्त जापानी आक्रमण के भय से ब्रिटिश सरकार ने फौरन इन नर कंकालों की जांच के लिए एक वैज्ञानिकों की टीम को बुलाया। जांच के बाद पता चला कि ये कंकाल जापानी सैनिकों के नहीं थे, बल्कि ये नर कंकाल तो और भी ज्यादा पुराने हैं। इसके बाद समय समय पर इन कंकालों का परीक्षण होता रहा। इन परीक्षणों के आधार पर वैज्ञानिकों के अलग-अलग मत सामने आए। रूपकुंड झील में नर कंकाल क्यों है? और कैसे हैं? इस पर वैज्ञानिकों का मत एकसमान नहीं है।

हमें आशा है कि, आज के लेख की रोचक जानकारी आपको जरूर पसंद आएगी।

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